जून के तप्त दिनों में, 1999 के मई महीने में, जब सूरज धरती को अपनी गर्मी से जला रहा था, भारतीय सैन्य के जवान और अधिकारी अपने देश के इतिहास में एक नई गाथा रच रहे थे। कश्मीर के कारगिल जिले की वो सुनसान पहाड़ियों पर, एक साहसिक युद्ध की तैयारियाँ हो रही थीं। पाकिस्तानी सैन्य ने अपनी साज़िश रची थी और भारत की भू-सीमा को भ्रष्ट करने का प्रयास कर रही थी।
जश्न-ए-कारगिल शीर्ष पर पाकिस्तानी झण्डे का तिरंगा दिख रहा था, जब भारतीय सैन्य ने खुद को उत्तराधिकारी आक्रमणी सेना के रूप में भेजा। जीवन और मौत के बीच के युद्ध के इस मैदान में भारतीय जवानों ने वीरता के परिचय को नए तरीके से लिखा।
तोलोलिंग चुनाव की घेराबंदी में, भारतीय सैन्य ने पाकिस्तानी सैन्य को प्रतिरोध किया। दोनों तरफ गोलियों की गर्माहट और ग्रेनेडों की भीषण गिरफ्तारी ने युद्ध के मैदान में सिर्फ वीरों को खड़ा किया।
फिर आया वह दिन, 26 जुलाई, 1999 – विजय दिवस। भारतीय सैन्य की विजयी ताकत ने युद्ध में सारे दुश्मनों को ध्वस्त कर दिया। कारगिल युद्ध का सफलतापूर्वक अंत हुआ, लेकिन उसकी चर्चा और वीरता आज भी भारतीय जनता के दिलों में बसी है।
युद्ध के इस साहसिक पृष्ठ को आज भी याद करके हम अपने वीर जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। उनकी शौर्यगाथा हमें सशक्त और गर्वभाषी बनाती है। इस युद्ध ने दिखाया कि भारतीय सैन्य की ताक़त अपार है और उनका देशभक्ति में समर्पण अद्भुत है। वे नहीं सिर्फ सीमा की रक्षा करते हैं, बल्कि हम सबकी सुरक्षा और समृद्धि के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करते हैं।