UK Police Online FIR Registration 2022 | उत्तराखंड ऑनलाइन FIR कैसे करें @uttarakhandpolice.uk.gov.in @e-FIR U
Uttarakhand Online FIR VIEW
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उत्तराखंड के लोगों के लिए अच्छी खबर है.
उत्तराखण्ड सरकार ने लोगों को FIR करने में होने वाली परेशानियों को कम करने के लिए ई-एफआईआर (E-FIR) की सुविधा दिया गया हैं ।
उत्तराखंड के लोग अब घर बैठे ही एफआईआर दर्ज कर सकते हैं. शुरुआत में केवल इसमें चोरी और गुमशुदगी को लेकर ई एफआईआर किया जा सकता हैं।
अब आपको थाने में जाने का डर नहीं सताएगा क्योंकि उत्तराखण्ड सरकार द्वारा अब घर बैठे online FIR दर्ज कराने की व्यवस्था करने जा रही हैं। फिर आप अपने मोबाइल के माध्यम से घर बैठे ही online FIR दर्ज करा सकते हैं। घर बैठे ऑनलाइन ई-एफआईआर दर्ज कराने के लिए आपके साथ पास दो option उपलब्ध रहेगा है –
(1).Official Website – https://uttarakhandpolice.uk.gov.in/ के माध्यम से [Through Uttarakhand police official website]
(2).Mobile Application – देवभूमि ऐप के माध्यम से [Through DevBhumi Mobile App ]
नोट – यदि आपके साथ कोई अप्रिय घटना घटित हो गई है। और आप उस पर तुरंत कार्रवाई चाहते हैं। तो आपको ऑनलाइन एफआईआर दर्ज कराने के बजाय 100 नंबर पर कॉल करके शिकायत करनी चाहिए। 100 नंबर पर कॉल करके शिकायत करने पर आपको तुरंत सहायता प्रदान की जाएगी।
पुलिस महकमा E-FIR के वर्चुअल थाने को स्थापित करने जा रही हैं जहां वर्चुअल थाने में शिकायत की रसीद भी दिया जायेगा। इसके बाद शिकायत का परीक्षण के लिए संबंधित थाने में उसे आगे बढ़ाया जाएगा इसके अलावा E-FIR पोर्टल को देवभूमि ऐप से भी जोड़ा गया हैं।
उत्तराखंड e-fir पोर्टल को सीसीटीएनएस (CCTNS)के अंतर्गत बनाया गया है।
इस संदर्भ में सीएम पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि सरलीकरण, समाधान, निस्तारण और संतुष्टि सरकार का मूल मंत्र है, प्रशासनिक व्यवस्था इस तरह होना चाहिए जिससे जनता आसानी से अपनी शिकायतों का समाधान करा सके.
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी बोले हैं कि e-FIR से आम जनता को बहुत सुविधाएं प्राप्त होगी।
मुख्यमंत्री उत्तराखंड पुलिस प्रशिक्षण, आधुनिकीकरण और पुलिस सुधार से संबंधित विभिन्न बिंदुओं पर बैठक आयोजित करने के निर्देश दिये। उन्होंने कहा कि पुलिसिंग में आधुनिक तकनीक का उपयोग बढ़ाये जाने की जरूरत है, झूठी FIR को रोकने के लिये जरूरी प्राविधान किये
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FIR की परिभाषा
जब किसी (आपराधिक) घटना के संबंध में पुलिस के पास कार्यवाई करने के लिए सूचना को दर्ज किया जाता हैं उसे “प्राथमिकी” या “प्रथम सूचना रिपोर्ट “(FIR) कहते है।
FIR बहुत ही महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ है क्योंकि यह “आपराधिक न्याय की प्रक्रिया” को गति प्रदान करती है। FIR दर्ज होने के बाद ही पुलिस मामले की जाँच शुरू करती है।
सामान्य अर्थ में समझे प्रथम सूचना रिपोर्ट:
FIR एक लिखित दस्तावेज़ है जो पुलिस द्वारा तब दर्ज किया जाता हैं जब उसे किसी संज्ञेय अपराध के बारे में सूचना प्राप्त होती है।
यह एक “सूचना रिपोर्ट” है जो समय पर सबसे पहले पुलिस तक पहुँचती है, इसीलिये इसे प्रथम सूचना रिपोर्ट कहा जाता है।
यह आमतौर पर एक “संज्ञेय अपराध” के शिकार व्यक्ति द्वारा या उसकी ओर से किसी व्यक्ति द्वारा पुलिस में दर्ज कराई गई शिकायत होती है। किसी भी व्यक्ति द्वारा संज्ञेय अपराध की सूचना मौखिक या लिखित रूप दिया जा सकता हैं।
FIR शब्द IPC, CrPC अथवा , 1973 या किसी अन्य कानून में परिभाषित नहीं किया गया है।
हालाँकि पुलिस नियमों या कानूनों में CrPC की धारा 154 के तहत दर्ज की गई “जानकारी” को FIR के रूप में जाना जाता है।
Note:- इस तरह FIR के तीन महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं:
(1).जानकारी एक संज्ञेय अपराध से संबंधित होनी चाहिये।
(2).यह सुचना लिखित या मौखिक रूप में “थाने के प्रमुख” को दी जानी चाहिये।
(3).इसे मुखबिर द्वारा लिखा और हस्ताक्षरित किया जाना चाहिये और इसके प्रमुख बिंदुओं को “दैनिक डायरी” में दर्ज किया जाना चाहिये।
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FIR दर्ज होने के बाद क्या हो सकता है?
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(1).पुलिस मामले की जाँच करेगी और गवाहों के बयान या अन्य वैज्ञानिक सामग्री के रूप में साक्ष्य एकत्र करेगी।
(2).पुलिस कानून के अनुसार कथित व्यक्तियों को गिरफ्तार कर सकती है।
(3).यदि शिकायतकर्ता के आरोपों की पुष्टि करने के लिये पर्याप्त सबूत हैं, तो “आरोप पत्र” दाखिल किया जाएगा। अन्यथा कोई सबूत नहीं मिलने का उल्लेख करते हुए एक “अंतिम रिपोर्ट” अदालत में प्रस्तुत की जाएगी।
(4).यदि यह पाया जाता है कि कोई अपराध नहीं किया गया है, तो रद्दीकरण रिपोर्ट दर्ज की जाएगी।
(5).यदि आरोपी व्यक्ति का कोई पता नहीं चलता है, तो एक ‘अनट्रेस्ड’ रिपोर्ट दर्ज की जाएगी।
Note:- यदि अदालत जाँच रिपोर्ट से सहमत नहीं है, तो वह आगे की जाँच का आदेश दे सकती है।
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यदि पुलिस FIR दर्ज करने से इनकार कर दे तो क्या कर सकते हैं?
(1).CrPC की धारा 154(3) के तहत यदि कोई व्यक्ति किसी “थाने प्रभारी अधिकारी” की ओर से FIR दर्ज करने से इनकार कर दे तो वह संबंधित पुलिस अधीक्षक/DCP को शिकायत कर सकता है।
यदि पुलिस अधीक्षक/DCP इस तथ्य से संतुष्ट है कि इस तरह की जानकारी से संज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो वह स्वयं या तो मामले की जाँच करेगा, या किसी अधीनस्थ पुलिस अधिकारी को जाँच का निर्देश देगा।
(2).यदि प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाती है, तो पीड़ित व्यक्ति संबंधित न्यायालय के समक्ष CrPC की धारा 156(3) के तहत शिकायत दर्ज कर सकता है और यदि न्यायालय को यह लगता हैं कि शिकायत में संज्ञेय अपराध शामिल है तो वह पुलिस को FIR दर्ज करने और कार्रवाई करने का निर्देश दे सकता हैं।
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यदि पुलिस FIR दर्ज करने से इनकार कर दे तो क्या कर सकते हैं?
(1).CrPC की धारा 154(3) के तहत यदि कोई व्यक्ति किसी “थाने प्रभारी अधिकारी” की ओर से FIR दर्ज करने से इनकार कर दे तो वह संबंधित पुलिस अधीक्षक/DCP को शिकायत कर सकता है।
यदि पुलिस अधीक्षक/DCP इस तथ्य से संतुष्ट है कि इस तरह की जानकारी से संज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो वह स्वयं या तो मामले की जाँच करेगा, या किसी अधीनस्थ पुलिस अधिकारी को जाँच का निर्देश देगा।
(2).यदि प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाती है, तो पीड़ित व्यक्ति संबंधित न्यायालय के समक्ष CrPC की धारा 156(3) के तहत शिकायत दर्ज कर सकता है और यदि न्यायालय को यह लगता हैं कि शिकायत में संज्ञेय अपराध शामिल है तो वह पुलिस को FIR दर्ज करने और कार्रवाई करने का निर्देश दे सकता हैं।
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संज्ञेय अपराध और गैर-संज्ञेय अपराध को समझते हैं?
संज्ञेय अपराध = संज्ञेय अपराध उस अपराध को कहते है जिसमें पुलिस किसी व्यक्ति को “बिना वारंट” के गिरफ्तार कर सकती है।
पुलिस स्वयं अधिकृत हैं कि कोई भी संज्ञेय मामले की जाँच शुरू कर सके और ऐसा करने के लिये उन्हें न्यायालय से किसी आदेश की आवश्यकता नहीं होती है।
गैर-संज्ञेय अपराध: गैर-संज्ञेय अपराध उस अपराध को कहते है, जिसमें किसी भी पुलिस अधिकारी को बिना वारंट के गिरफ्तार करने का अधिकार नहीं है।
न्यायालय की अनुमति के बिना पुलिस अपराध की जाँच नहीं कर सकती है।
गैर-संज्ञेय अपराधों के मामले में CrPC की धारा 155 के तहत FIR दर्ज की जाती है।
शिकायतकर्त्ता आदेश के लिये न्यायालय का सहारा ले सकता है। उसके बाद न्यायालय पुलिस को शिकायतकर्त्ता की शिकायत पर जांँच का निर्देश दे सकता है।
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Uttarakhand Helpline Number
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